कविता

खिड़कियों पर जालियां हैं, ये पता कैसे चले ?

युद्ध की तैयारियां हैं, ये पता कैसे चले ?

तन बदन की सब नसें दुखने लगीं हैं इन दिनों,

कौन सी बीमारियां हैं, ये पता कैसे चले ?

बैग में हथियार होंगे, ये हमें अनुमान था,

कील हैं या आरियां हैं, ये पता कैसे चले ?

वो महक है ही नहीं, ना इस तरफ़ ना उस तरफ़ ,

फूल वाली क्यारियां हैं, ये पता कैसे चले ?

आग में जलकर ‘चरौरा’ खाक जितनी भी हुईं,

सब उन्हीं की गाड़ियां हैं, ये पता कैसे चले ?

~~समोद

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